सुरदर्शनशाह और देवी सिंह. फोटो : डॉ. शिवप्रसाद डबराल की पुस्तक से साभार.
गढ़वाली राजा सुदर्शन शाह की राजनैतिक और आर्थिक स्थिति शुरुआत में बहुत खराब थी. कनखल के युद्ध के बाद एक बात वह समझ गया था कि उसकी भलाई अंग्रेजों की भक्ति में ही है. भारत के अधिकांश छोटे राजाओं की तरह सुदर्शन शाह ने अपना जीवनकाल अंग्रेजों की भक्ति में ही बिताया.
टिहरी राज्य अभिलेखागार के एक रजिस्टर में 286 अंग्रेजों के नाम हैं, जिन्हें सुदर्शन शाह राजा बनने से पहले और बाद में मिला. गढ़वाल में जब कोई अंग्रेज शिकार खेलने आता तो राजा उसके शिकार खेलने या भ्रमण और उसकी सुख सुविधा का पूरा ध्यान रखता.
राजा ने अपने राजकर्मचारियों. जागीरदारों और थोकदारों के लिए कठोर आदेश दिया था
अंगरेज बहादुर की कुली बरदायश मा हाजर रहणों.
(टिहरी गढ़वाल राज्य इतिहास – 1)
इसका अर्थ था कि राज्य में आने वाले अंगरेजों की सामग्री ढ़ोने और उनकी भोजनव्यवस्था के लिये प्रस्तुत रहें. इस सामाग्री ढ़ोने में अंग्रेजों, उनकी मेमों व बच्चों के अतिरिक्त उनके मुर्गों और कुत्तों को भी पालकी, डंडी या कंडी में ढ़ोना पड़ता था.
जैसे ही कोई अंग्रेज श्रीनगर, ऋषिकेश, देहरादून या मसूरी की ओर से उसके राज्य में प्रवेश करता तो उसके और उसके परिवार का बोझा ढ़ोने के लिये वहां के परिवारों को उपस्थित रहना पड़ता. यह उनका एक अत्यावश्यक काम था. ऐसा न करने पर इसे राज्य के अंतर्गत दंडनीय अपराध माना जाता था.
सुदर्शन शाह ने अनेक मौकों पर लोगों को इस काम में छोटी से चूक होने पर दण्डित भी किया था.
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-काफल ट्री डेस्क
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